जीवनोपयोगी सुविचार
1. पुरुष से पुरुषोत्तम , नर से नारायण का अभ्यास ही उपासना है।
2.
मानसिक दक्षता का पूरा पूरा उपयोग न करनें की प्रवृत्ति का नाम ही प्रमाद है ।
3.
निंद्रा , तन्द्रा , भय , क्रोध , आलस्य और दीर्घसूत्रता यह छह दोष ऐश्वर्य चाहने वाले को त्याग देने चाहिए ।
4.
जो आनंद प्रयत्न में है , भावना में है , आकुलता में है वह मिलन में कहां है ।
5.
प्रेम , आत्मियता और एकता में आनंद सन्निहित है ।
6.
दुराग्रह ठाने हुए लोगों के लिए उपदेश करना व्यर्थ ही जाता है ।
7.
थोड़ी सी पुस्तकें पढ़कर ज्ञान बढ़ा लेना कोई बड़ी बात नहीं है , शिक्षा का उद्देश्य तो मानव को परिपूर्ण बनाना है ।
8.
आत्म ज्ञान सभी ज्ञानों की जननी है ।
9.
अहंकार आध्यात्मिक जीवन की एक महान बाधा है । संतों के संग में रहने पर ही हमें अनुभव होगा कि हम कितने अहंकारी है । साधु अहंकार की महान औषधि है ।
10.
घृणा उतनी ही बुरी है , जितनी आसक्ति । क्रोध उतना ही बुरा है , जितना काम । इस सम्बंध में कभी भी गलती ना करो ।
11.
सेवा वह अग्नि है जिसमें तपे बिना कोई अन्तः करण शुद्धता , निर्मलता , उदारता एवं आध्यात्मिकता की कसौटी पर खरा उतर सकने योग्य नहीं बन सकता ।
12.
दूसरों के सरसों के समान दोष को भी व्यक्ति देख लेता है, परन्तु स्वयं के बिल्व फल के समान बड़े बड़े दोषों को अनदेखा कर देता है ।
13.
अयोग्य की कामनाएं कभी पूर्ण नहीं होती ।
14.
व्यभिचार के , चोरी के , अनीति बरतने के , क्रोध एवं प्रतिशोध के , ठगने एवम दम्भ , पाखंड बनाने के कुविचार यदि मन में भरे रहें तो मानसिक स्वास्थ्य का नाश ही होने वाला है ।
15.
चलती हुई चींटी सैंकड़ों मील का रास्ता तय कर लेती है परन्तु न चलता हुआ गरुड़ एक पग भी अग्रसर नहीं होता है ।
16.
हम चाहते हैं कि हमारी बहन बेटियों की दूसरे लोग इज्जत करें , उन्हें अपनी बहिन बेटी की निगाह से देखें । फिर यह क्योंकर उचित होगा कि हम दूसरों की बहन बेटियों को दुष्टता भरी दृष्टि से देखें ।
17.
तन की सुंदरता से मन की सुंदरता अधिक महत्व रखती है।
18.
मैले कपड़े को साफ करनें के लिए जो उपयोगिता साबुन की है । वही मन पर चढ़े हुए मैल को शुद्ध करने के लिए स्वाध्याय की है ।
19.
अभाव के कारण जितनों को असफल रहना पड़ा , उससे अधिक ठोकर उन्हें खानी पड़ी जो साधन होते हुए भी उनका सदुपयोग न कर सके ।
20.
नशा नास की जड़ है भाई , फल इसका अतिसय दुखदायी।।
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